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*अब घूरे पर बैठकर पंगत नहीं खाएंगे सहरिया आदिवासी*

*अब घूरे पर बैठकर पंगत नहीं खाएंगे सहरिया आदिवासी*

 _सहरिया क्रांति के आठवें स्थापना दिवस पर  महा पंचायत में पांच संकल्प लिए_
 _धूमधाम से मना सहरिया क्रांति का स्थापना दिवस_ 

शिवपुरी। रिमझिम बारिस की बूंदों  और खुशबुओं से सराबोर माहौल में सहरिया क्रांति का आठवां स्थापना दिवस आदिवासी समाज द्वारा जिला मुख्यालय पर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।  संभाग भर से शिवपुरी आये सहरिया जनजाति के लोगों ने विशाल महा पंचायत लगाकर पांच संकल्प पारित किये और बार्षिक कार्ययोजना तैयार कर उस  पर अमल करना प्रारम्भ किया। इस अवसर पर सहरिया समाज की महिलाओं और युवाओं ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से सभी का मन मोह लिया। कार्यक्रम के अंत में सहभोज का आयोजन हुआ।  कार्यक्रम समापन के साथ नाचते झूमते सहरिया आदिवासी अपने -अपने गांवों को रवाना हो गए।
शोषण दमन और अत्याचार के विरुद्ध खड़ी हुई सहरिया क्रांति आंदोलन का आगाज पत्रकार संजय बेचैन ने  अगस्त 2012 को शिवपुरी विकासखंड की ग्रामपंचायत डबीआ से किया था।  दबंग और बाहुबलिओं के  आक्टोपसी शिकंजे में जकड़े सीधे और सरल आदिवासियों  ने क्रांति की मसाल प्रज्वलित कर अपने हक और जमीनों के लिए आवाज उठाना शुरू कर कई ऐसे व्यसनों से तौबा की थी जो सहरिया जनजाति के विनाश व पिछड़ेपन की जड़ थे।  डबिआ  गांव से उठी ये चिंगारी आज मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान व उत्तरप्रदेश के सहरिया आदिवासी बाहुल्य जिलों में  बदलाब की बयार ले आई है।
सहरिया क्रांति के स्थापना दिवस पर जिला मुख्यालय पर स्थित विवेकानंद पुरम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।  कार्यक्रम के प्रारम्भ में सहरिया क्रांति आंदोलन के संयोजक संजय बेचैन ने मंचासीन सहरिया मुखियाओं का माल्यार्पण कर स्वागत किया।  उसके बाद संभागभर से आये सहरिया मुखियाओं ने महापंचायत का आयोजन किया और सामाजिक समस्याओं पर विचार विमर्श किया।  सहरिया क्रांति महा पंचायत में  हजारों  सहरिया क्रांति सदस्यों की सर्वसम्मति से पांच संकल्प पारित किये गए।
सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन ने उपस्थित सहरिया साथियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सहरिया जनों के शांत और भोले स्वभाव का अनुचित लाभ उठाकर अब तक दबंग और अत्याचारी लोग उन पर अमानुषिक जुल्म ढाते रहे हैं , आदिवासियों  की जमीन से लेकर उनके शरीर तक बाहुबली कब्जा किये हैं , केंद्र और राज्य सरकारें मूक तमाशाई की भूमिका में हैं  आदिवासियों के हितार्थ सैंकड़ों  संस्थाएं काम कर  रही हैं लेकिन दुर्भाग्य की आदिवासी वहीं का वहीं है मगर संस्थाओं के कर्ताधर्ता कई गुना धनी हो गए।  उन्होंने कहा कि सहरिया क्रांति आंदोलन एक मात्र ऐसा आंदोलन है जिसने किसी भी तरह की आर्थिक मदद लिए बगैर ही समाज उत्थान में महता योगदान दिया है और आज सहरिया भाई अपना हक और अधिकार पाने लगे हैं.
सहरिया क्रॉन्ति  के जिलाध्यक्ष कल्याण आदिवासी ने कहा कि हमारे हक और अधिकारों में कोई भी तत्व बाधा बनेगा तो बख्शा नहीं जायेगा।  कल तक अज्ञानवश हम जो झेलते रहे वो अब नहीं झेलेंगे ,आदिवासियों पर बुरी नज़र रखने वालों को ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा।
सभा को सहरिया क्रांति के नींव के पत्थर अनिल आदिवासी , विजय आदिवासी, ऊधम आदिवासी , राजेंद्र आदिवासी सहित लगभग एक दर्जन इ अधिक लोगों ने सम्बोधित किया।
महिला सदस्य कुसुंम  बाई और लक्ष्मी आदिवासी ने शराब और नशे से दूरी बनाने की अपील इस अवसर पर की

सहरिया पंचायत में लिए गए संकल्प
1 – भूमि मुक्ति :किसी भी आदिवासी भाई बहन की जमीन जिस पर बाहुबलियों और दबंगों ने प्रशासन की मूक सहमति से कब्जा कर  रखा है उसे मुक्त कराने का बड़ा भूमि मुक्ति आंदोलन का आगाज एवं जिन सहरिया आदिवासी  भाइयों के हक की जमीन के मामले सरकारी कार्यालयों में असुनवाई की स्थिति में पड़े हैं उन पर अमल कराने को सतत संघर्ष  , आंदोलन और प्रदर्शन किये जायेंगे।
2- बंधुआ मुक्ति :देश की आजादी के इतने बर्ष बाद भी आज अधिकांश दबंग और बाहुबलियों के फार्महाउसों पर गरीब  सहरिया आदिवासी महिदार [ बंधुआ ] बने हैं वे अपनी मुक्ति को तड़प रहे हैं लेकिन बाहुबलियों के खौफ और अमानुषिक अत्याचारों के कारण अपने को असहाय पा रहे हैं।  गांव गांव से ऐसे लोगों की  सूची तैयार कर बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया जाएगा।
3- अपमान भोज का बहिष्कार : आज भी कई गांवों में भोले भाले सहरिया आदिवासियों के साथ दोयम दर्जे का व्यबहार किया जाता है , किसी दबंग या बाहुबलियों के यहां होने वाले समारोह में जो भोज का आयोजन किया जाता है उसमे आदिवासियों को घूरे पर  नीचे जमीन पर बैठाकर अपमानित करके भोजन की पंगत लगाई जाती है और अन्य कथित ऊंचे लोगों को टाटपट्टी या टेवल कुर्सी पर बैठाकर खाना खिलाया जाता है ,इस तरह की पंगतों में कोई भी सहरिया आदिवासी भोजन नहीं करेगा ,यदि कोई इस तरह जानवरों से भी बदतर स्थिति में भोजन करने गया तो उस पर समाज के लोग निर्णय लेंगे और आदिवासी की सहरिया क्रांति से सदस्य्ता स्वतः खत्म हो जाएगी। मुखियाओं ने तय किया है की जैसे को तैसा सिद्धांत के तहत अब ऐसा दुर्व्यवहार करने वालों को आदिवासी भी घूरे पर बैठाकर ही पंगत जिवायेंगे। 
4 – शिक्षा सुधार : गांव के कई विद्यालयों में शिक्षक मात्र कागजी खानापूर्ति करने आते हैं , आदिवासी बच्चों को शिक्षा का लाभ नहीं मिल पा रहा और वे मुख्यधारा से भटक रहे हैं , यदि शिक्षक विद्यालयों में बच्चों को नहीं  पढ़ायेगा तो उसको सेवामुक्त करने तक गाँव से आंदोलन चलाया जाएगा , साथ ही जो माता अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजेगी उसको सहरिया क्रांति की आगामी बैठकों में आने का कोई हक नहीं होगा।
5 – सरकारी योजनाओं पर सतत निगरानी : आदिवासियों के हितार्थ चल रही योजनाएं भ्र्ष्टाचार और दलालों के चंगुल में हैं जिससे पात्र हितग्राहियों की जगह कई बर्षों से योजनाओं का लाभ  केवल कुछ ख़ास सहरिया  परिवारों को मिल रहा है अन्य पात्र लोग योजनाओं के लाभ से बंचित हैं , आंगनवाड़ियों , पोषाहार केंद्र , पंचायतों में व आदिमजाति विभाग में जो गड़बड़झाला चल रहा है उसकी जमीनी हकीकत बताने जिला प्रशासन के साथ सहरिया क्रांति सदस्य मासिक बैठक कर कार्यवाही को बाध्य करेंगे.

संकल्प  पारित होते ही सहरिया क्रांति सदस्य महिला पुरुष और बच्चों ने लोकगीतों पर मनभावन प्रस्तुतिया दीं।  दिन भर हर्ष उल्लास के साथ चले स्थापना दिवस कार्यक्रम के बाद सहभोज कर सभी अपने अपने गांव लौट गए मनभावन यादें लिए।

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