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महिला दिवस पर कविता-स्त्री जो ठान ले , तो रोकना आसान नहीं है |

स्त्री पर जब जब..
झूठे इल्ज़ामों..
कर्णभेदी तानों की
बारिश हुई है |

उसका दमन करने
जब जब..
ईर्ष्या खड़ी हुई है |

शब्द वारों प्रहारों से
जब जब..
वो रो उठी है |

मैं सच्चाई हूँ…
कह लड़ने
वो दुगने जोश से उठी है |

बहती नदिया की धार बाँधना आसान नहीं है |
स्त्री जो ठान ले , तो रोकना आसान नहीं है |
जिसकी तुमने ,ममता कोमलता देखी है ,
उसकी आँखों में ज्वाला देखना आसान नहीं है |

वही जो उतरन पहन , ठंडी रोटियाँ खाकर. ,
टॉपर बन इतिहास भविष्य बनाती है |
वो स्त्री है जो तुमको पिता बनाती है |
रोका सबने उसे अशुद्ध कह मंदिर में जाने से ,
इसी श्रेष्ठता से वो तुम्हारी जननी कहलाती है |

उर्वशी शर्मा गौतम
शासकीय शिक्षिका
शिवपुरी मध्यप्रदेश

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